Manish Patel

भक्तिकालीन बाज़ारवाद और भक्ति

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  • Manish Patel

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भारतीय मध्यकालीन समाज और संस्कृति की समझ रखने और समझने की कोशिश करने वाले हरेक अध्येता की नज़र इस ओर जाती है कि बाज़ार भक्तिकालीन कवियों के बात करने का एक ख़ास बिन्दु रहा है। जहाँ ये कवि बाज़ार को सबसे अधिक जनतांत्रिक जगह के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं, चाहे वे कबीर रहे हो रैदास हो या फिर तुलसी। ये कवि हमें होशियार भी करते हैं कि बाज़ार में सारी भौतिक चीजें बिक रही हैं आप उन्हें खरीद सकते हैं मगर प्रेम आप नहीं खरीद सकते। ये कवि प्रेम की लगातार वक़ालत करते है। इनके पास दुनिया को खूबसूरत बनाने का एक ही रास्ता है -प्रेम। वे बताते हैं कि कैसे ये भौतिक चीजें मनुष्य के प्रेम को ब्रह्म यानी ज्ञान या मानवता के रास्ते में रोड़ा बन जाती हैं। साथ ही कैसे भौतिक चीज़ें आज अपनी पाँव तेजी से पसारती जा रही हैं।

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